Concept of Disease रोग की अवधारणा अध्याय - 1, यहाँ से पढ़ें पूरी जानकारी हिंदी में

Concept of Disease : रोग की अवधारणा अध्याय – 1, यहाँ से पढ़ें पूरी जानकारी हिंदी में

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Concept of Disease : रोग की अवधारणा, रोग (Disease) Disease = Dis-ease, Dis = विपरीत, ease = आराम अर्थात आराम के विपरीत अवस्था रोग है व्यक्ति की ऐसी अवस्था जिसमें वह दैनिक क्रिया कलापों को सामान्य रूप से करने में सक्षम नहीं हो, व्यक्ति की ऐसी अवस्था रोगी अवस्था कहलाती है । 


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वैबस्टर ( Webster) के अनुसार – मनुष्य के स्वास्थ्य की ऐसी अवस्था जिसमें मनुष्य के शरीर में जैविक चिन्ह (Vital sign) अपनी सामान्य अवस्था (सही रूप से) में कार्य नहीं करते हैं और मनुष्य की कार्य क्षमता में कमी आती है ।

“A condition in which health is impaired, a departure from, a state of health, an alter- ation of the human body interrupting the per- formance of vital functions”. Concept of Disease

Oxford अंग्रेजी शब्दकोश के अनुसार – रोग, शरीर या शरीर के अंग की ऐसी अवस्था जिसमें शरीर या शरीर के किसी अंग की कार्य प्रणाली बाधित हो

“A condition of the body or some part /organ of the body in which its functions are disturbed/deranged”.

कार्यिकी / मानसिक रूप से कार्य करने की क्षमता में कमी, रोग कहलाती हैरोग शरीर की एक असामान्य स्थिति है, जिसमें मनुष्य की कार्य करने की क्षमता सामान्य क्षमता से कम हो जाती हैयह शारीरिक, मानसिक और सामाजिक हो सकती है। 

Types of Disease | रोग के प्रकार

1. तीव्रता के आधार पर 

  • तीव्र (Acute ) : यह अवस्था अचानक शरीर में बहुत तेजी से अपना प्रभाव डालती हैं। उदाहरण:- तीव्र दर्द (Acute pain, acute pancreatitis), acute M.I, ALD आदि ।
  • दीर्घकालिक ( Chronic ) : ये रोग लम्बे समय तक शरीर पर धीरे-धीरे प्रभाव डालते हैं । उदाहरण:- Chronic pain, Chronic liver disease. 

2. गम्भीरता के आधार पर

  • थोड़ा अधिक (Mild) : यह अवस्था कम घातक होती हैं। शरीर की कार्य प्रणाली को थोड़ा-थोड़ा प्रभावित करती हैं ।
  • थोड़ा गम्भीर (Moderate ) : यह थोड़ी घातक अवस्था होती है। शरीर की कार्य प्रणाली को थोड़ा ज्यादा प्रभावित करती हैं |
  • गम्भीर ( Severe ) : यह अवस्था बहुत अधिक घातक होती है तथा शरीर की कार्य प्रणाली को गम्भीर रूप से प्रभावित करती हैं।

3. संक्रमण के आधार पर

  • संक्रामक (Infectious) :यह रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलते हैं। उदाहरण – क्षय |
  • असंक्रामक (Non-infectious ) : यह रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलते हैं । जैसे- हृदय घात |

4. कारक के आधार पर

  • आनुवांशिकी रोग (Hereditary disease) : ये रोग एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरित होते हैं। जैसे – हिमोफीलिया, वर्णान्धता ।
  • कार्यिकी सम्बन्धित रोग (Physiological disease) : ये रोग शरीर की कार्यिकी में असामान्यता के कारण उत्पन्न होते हैं। उदाहरण- उल्टी, दस्त ।
  •  रोगाणु जनित रोग (Pathogenic disease) : ये रोग शरीर के अन्दर रोगाणु के प्रवेश के कारण होते हैं। जैसे- हैजा, मलेरिया ।
  • अभाव जनित रोग (Deficiency disease) : ये शरीर में आवश्यक विटामिन, लवण, प्रोटीन, ऊर्जा आदि की कमी के कारण होते हैं। जैसे- सूखा रोग, अन्धता, स्कर्वी आदि ।

Cause of Disease | रोग के कारण

प्राचीन काल से ही रोग शरीर को प्रभावित करते आये हैं, जैसे-जैसे विज्ञान का विकास हुआ, उसी प्रकार इनके कारणों (कारकों) में भी दार्शनिक एवं वैज्ञानिकों ने अपने-अपने मतों से इनके कारणों का वर्णन किया। इसके बावजूद भी कई रोग हैं, जिनके होने के कारण का आज भी कोई वर्णन नहीं है। Concept of Disease

1. दैवीय सिद्धान्त ( Super natural theory) : प्राचीन काल में माना कि रोगों के लिए दैवीय शक्ति, दैत्य शक्ति जिम्मेदार है। माना जाता रहा है कि जब हमारे कुल देवी-देवता आदि हम से रूष्ट हो जाते हैं तो हमें रोगी बना देते हैं, लोग ईर्ष्या के कारण दूसरों पर काला-जादू टोना-टोटका करवा देते हैं। इस सिद्धान्त को उस समय अशिक्षा और अन्धविश्वास के कारण बहुत बढ़ावा मिला लेकिन कालान्तर पर लोगों ने इसे शोधकर्ताओं के शोध के साथ-साथ मानना कम कर दिया ।

2. रोगाणु सिद्धान्त (Germ theory) : इस सिद्धान्त को 20 वीं शताब्दी के शुरू में लुईस पाश्चर ने दिया, जिसके अनुसार रोगों की उत्पत्ति के लिए रोगाणु (Microbes) जिम्मेदार होते हैं, न किं दैवीय शक्ति। इस सिद्धान्त को वैज्ञानिकों ने प्रायोगिक रूप से सिद्ध करके बताया कि केवल रोगाणु ही रोग के लिए जिम्मेदार हैं। समय के साथ-साथ इस सिद्धान्त की भी आलोचना हुई कि ऐसे भी कई रोग है, जिनका की रोगाणु नहीं होता है फिर भी शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं। जैसे- हृदयघात, पक्षाघात, उच्च रक्तचाप, मधुमेह आदि । बाद में इस सिद्धान्त को एक स्तर तक सही माना गया। Concept of Disease

3. जानपदिक रोग – विज्ञानत्रयी सिद्धान्त (Epide- miological triad theory) : इसके अनुसार मनुष्य में रोग की उत्पत्ति के लिए केवल रोगाणु ही जिम्मेदार नहीं है, बल्कि रोगाणु के साथ-साथ परपोषी और पर्यावरण भी इसके लिए जिम्मेदार है।


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      कारक के प्रभावी होने पर, परपोषी की प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर एवम् उपयुक्त वातावरण होने पर ही कारक परपोषी को रोगी बना सकता है। इन तीनों में से किसी भी एक घटक की अनुपस्थति से कारक अप्रभावी हो सकता है।

(a) कारक (Agent ) : रोग की अवस्था में रोग कारक (Agent) ही मुख्य एवम् प्राथमिक घटक होता है। कारक सजीव / निर्जीव हो सकता है ।

  • जैविक कारक (Biological agent) : विषाणु, जीवाणु, कवक, जीव-जन्तु आदि जीवित कारक हैं, जो कि परपोषी में रोग उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं । जैसे – एड्स – HIV, क्षय – माइको बैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस, प्लाज्मोडियम – मलेरिया ।
  • यांत्रिकी कारक (Mechanical agent ) : कल कारखानों में मशीनों के बाहर निकले धुएँ, कलपुर्जे, शरीर पर घाव, अस्थिभंग आदि व्याधि उत्पन्न करते हैं ।
  • रासायनिक कारक (Chemical agent) : गैस, धातु, धूल, प्रदूषण और क्षार आदि के कारण शरीर में कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे – त्वचीय रोग, श्वसन रोग ।
  • भौतिक कारक (Physical agent) : विकिरण, तापमान, दाब, शीत, विद्युत के कारण मानव में कई प्रकार की व्याधि उत्पन्न होती है, जैसे- जलन, नपुंसकता, अन्धता इत्यादि |
  • पोषक कारक (Nutritional agent) : शरीर में पोषक तत्त्वों की कमी कई प्रकार की व्याधि उत्पन्न करती है। ये पोषक तत्त्व की कमी ही रोग के कारण हैं। प्रोटीन की कमी से सूखा रोग, कैल्सियम की कमी से अस्थि-भंगुरता, विटामिन A की कमी से अन्धता, विटामिन E की कमी से नपुंसकता ।
  • सामाजिक कारक (Social agent) : सामाजिक कारक जैसे- गांजा, अफीम, धूम्रपान और शराब आदि मानव शरीर में कई प्रकार की व्याधि उत्पन्न करते हैं, जैसे- मनोरोग, श्वसन सम्बन्धी रोग, यकृत सम्बन्धी रोग ।

(b) आन्तरिक कारक (परपोषी ) ( Host) : मनुष्य की उम्र, लिंग, पोषण, कार्यिकी, संरचना, आनुवांशिकता, जन्मजात विकार, मानसिक विकार, मधुमेह आदि आन्तरिक कारक हैं, जो कि शरीर के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं ।

  • परपोषी की रोग प्रतिरोधकता (Immunity power of host) : सभी मनुष्य की रोग प्रतिरोधकता भिन्न-भिन्न होती है। वयस्क व्यक्ति की रोग प्रतिरोधकता बच्चों एवम् बुजुर्गों की अपेक्षा अधिक होती है। रोग प्रतिरोधकता की कमी के कारण मनुष्य में कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं ।
  • जैविक कारक (Biological factor ) : जानपदिक में मानव शरीर को परपोषी घटक माना गया है। जिसमें कारक अपने आप की वृद्धि कर शरीर में रोग उत्पन्न करता है ।
  • सामाजिक-आर्थिक कारक (Socio-economic factor) : व्यक्ति विशेष का सामाजिक और आर्थिक स्तर, व्यवसाय, शिक्षा और वैवाहिक स्थिति आदि रोग के होने की सम्भावना को प्रभावित करते हैं ।
  • जीवन शैली (Life style) : मद्यपान, व्यसन, रीति-रिवाज आदि भी जीवन शैली से सम्बन्धित होते हैं, जोकि शरीर में रोग होने की सम्भावना को बढ़ाते हैं ।

(c) पर्यावरण ( Environment) : व्यक्ति के चारों ओर का पर्यावरणीय क्षेत्र व्यक्ति के स्वास्थ्य को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है । पर्यावरणीय स्थितियाँ रोग कारकों की प्रभाविता को कम या अधिक कर देती है। जिसके कारण परपोषी में रोग होने की सम्भावना कम / अधिक हो जाती है । concept of disease

  • जैविक पर्यावरण (Biological environment) : जीव-जन्तु हमारे चारों ओर वातावरण में पाये जाते हैं। जिनमें से कुछ व्याधि को हमारे शरीर तक पहुँचाते हैं। कुत्ता, बिल्ली जानवरों द्वारा संचारित रोग जैसे- रेबीज, Bovine tuberculosis (पालतू जानवर में पायी जाने वाली T. B (क्षय))।
  • भौतिक पर्यावरण (Physical environment) : इसमें पर्यावरण में स्थित जल, शोर, तापमान, शीत, वायु, कचरा, मृदा आदि की प्रदूषक अवस्था मानव शरीर में कई प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे- हैजा, बहरापन, अन्धता ।
  • सामाजिक पर्यावरण / वातावरण (Social en- vironment) : जीवन स्तर, शिक्षा का स्तर सामाजिक प्रथा, कुप्रथा आदि मानव शरीर को प्रत्यक्ष / अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर कई प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं । concept of disease

Classification of Disease | रोगों का वर्गीकरण

      रोगों का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वर्गीकरण हेतु विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा रोगों का अन्तर्राष्ट्रीय वर्गीकरण (International Classification of Disease- ICD) प्रकाशित किया जाता है। WHO द्वारा ICD 101 जनवरी 1993 में प्रकाशित किया गया है। जो निम्न प्रकार से रोगों का वर्गीकरण करता है :-

  • कुछ विशेष संक्रामक व परजीवी रोग (A00- B99)
  • नियोप्लान (C00 – D48)
  • रक्त एवन् रक्त उत्पादन करने वाले संगों के रोग तथा प्रतिरक्षा क्रिया में सम्मिलित कुछ विशेष रोग (D50-D89)
  • अन्तः स्त्रावी, पोषण सम्बन्धित एवम् उपापचय विकार (E00–E90)
  • मानसिक एवम् व्यवसायिक विकार (F00-199)
  • तंत्रिका तंत्र के रोग (GOOG99)
  • आँख एवम् अवयवों के रोग (H00-H59)
  • कान एवम् मेस्टोइड प्रवर्ध के रोग (H60-H95)
  • परिसंचरण तंत्र के रोग (100-199)
  • श्वसन तंत्र के रोग (J00-J99)
  • पाचन तंत्र के रोग (K00-K93)
  • त्वचा व अघोत्वचा ऊतक के रोग (L00–199)
  • पेशी कंकालीय तंत्र एवम् संयोजी ऊतक के रोग (M00-M99)
  • जनन मुत्रीय तंत्र के रोग (N00-N99)
  • गर्भावस्था, शिशु जन्म एवम् सूतिकावस्था के रोग (000–099)
  • नवजात जन्म पश्चात् कुछ विशेष रोग (POO P96)
  • जन्मजात विकार, विरूपण एवं गुणसुत्रीय असामान्यताएँ (Q00 – (99)
  • लक्षण चिन्ह, एवम् असामान्य क्लिनिकल व प्रयोगशाला निष्कर्ष जो कहीं भी वर्गीकृत नहीं किये गये है । (R00-R99)
  • चोट, विषाक्तता एवम् बाहृय कारणों के कुछ दूसरे दुष्परिणाम (S00-T98)
  • मृत्यु एवम् रोगावस्था के बाह्य कारण (VO1- Y98)
  • स्वास्थ्य स्तर को प्रभावित करने वाले कारक एवम् स्वास्थ्य सेवाओं के साथ सम्पर्क (Z00-Z99)

अंत, हमें उम्मीद हैं की यह लेख से सभी ANM में पढ़ने बाले छात्र – छात्राओं को  काफी मददगार साबित होगा | 

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