Prakritik Chikitsa Ka Prichay And Samany Upchar प्राकृतिक चिकित्सा का परिचय और सामान्य उपचार हिंदी में

Prakritik Chikitsa Ka Prichay And Samany Upchar : प्राकृतिक चिकित्सा का परिचय और सामान्य उपचार हिंदी में

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Prakritik Chikitsa Ka Prichay And Samany Upchar :- प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना है, उसके अनुसार प्रकृति के नियमों को समझकर उनका पालन कर स्वस्थ रहा जा सकता हैउस स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए जो उपाय किए जाते हैं, उन उपायों को प्राकृतिक चिकित्सा कहते हैं


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प्राकृतिक चिकित्सा मूलतः आयुर्वेद के स्वस्थवृत्त सिद्धान्त आश्रित है अर्थात् विकार प्रशमन के लिए उचित आहार, विहार व्यवहार के पालन को हम प्राकृतिक चिकित्सा कह सकते हैं तथा संचित मलों और दोषों को दूर करने के 

एक प्रामाणिक उपाय के रूप में हम इसे अपना सकते हैं प्राकृतिक चिकित्सा शरीर की जीवनीय शक्ति को जगाकर आरोग्य प्रदान करती हैप्रकृति के नियमों के अनुसार संतुलित, संयमित आहारविहार एवं व्यवहार का पालन करने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है तथा प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करने से व्यक्ति रोगी हो जाता है

रोगग्रस्त होने पर पंच महातत्त्वों से सृजित शरीर को मिट्टी, पानी, धूप, हवा, आकाश तथा प्रार्थना के द्वारा सम्यक् उपचारित करके आरोग्य का प्रकाश फैलाया जाता हैप्राकृतिक चिकित्सा एवं प्राकृतिक जीवनशैली शरीर की नैसर्गिक शक्ति को उद्घाटित करके स्वास्थ्य प्रदान करती हैउसके लिए जो विधाएं प्रचलन में है उनका संक्षिप्त किन्तु प्रमाणिक विवरण यहाँ दिया जा रहा है

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पंच-तत्त्व चिकित्सा 

पंचतत्त्व चिकित्सा के अन्तर्गत मिट्टी, वायु, जल आदि का प्रयोग किया जाता हैआकाशतत्त्वचिकित्सा के अन्तर्गत अर्द्धदिवसीय, एकदिवसीय, साप्ताहिक, अल्प तथा दीर्घकालिक फलोपवास, रसोपवास, जलोपवास, मौन, ध्यान, प्रार्थना तथा चिकित्सकीय सम्भाषण आदि आते हैं। 

जलतत्त्व- चिकित्सा के अन्तर्गत एनिमा, कटि, रीढ़, पैर, सिर, बांह आदि अंगों के स्नान, वाष्पस्नान तथा संवृताकार स्नान आदि का समावेश किया गया है। 

पृथ्वीतत्त्व – चिकित्सा के अन्तर्गत आमाशय, लीवर, पेड़, अग्न्याशय, जोड़ों, नेत्र, कपाल, सिर आदि की साफ सुथरी मिट्टी की गीली पट्टियां, सर्वांग मिट्टी . का लेप, बालू स्नान आदि का समावेश किया गया है। 

अग्नितत्त्व – के अन्तर्गत सूर्यचिकित्सा तथा रंगीन रश्मि चिकित्सा आदि वायु चिकित्सा के अन्तर्गत बाह्य वायु स्नान, दीर्घ श्वसन तथा भांतिभांति के

प्राणायाम और आहार – चिकित्सा के अन्तर्गत शोधक, संतर्पक तथा पोषक आहार का प्रयोग किया जाता है। 


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विभिन्न रोगों में स्वानुभूत निसर्गोपचार (Prakritik Chikitsa)

दमा, श्वास, कास, स्वरभेद आदि रोगों में एनिमा औषधि सिद्ध तैल से छाती, पीठ गले की मालिश, सुखोष्ण जल से स्नान, वाष्प स्नान, सूर्य स्नान, रसोपवास, फलोपवास एवं पोषक आहार के सेवन से लाभ होता है

अतिसार, अग्निमांद्य, अरुचि, संग्रहणी, कोलाइटिस, अजीर्ण, अम्लपित्त, अफारा, विबन्ध आदि में पेड़ पर मिट्टी की पट्टी, एनिमा, कटिस्नान, मालिश, रसोपवास, रुचिकारक शोधक- आहार, कुंजर क्रिया तथा नाशपाती, बेल, ग्वारपाठा तथा आंवला आदि संतर्पक एवं पोषक आहार का सेवन करने से लाभ होता है। 

ज्वर में नीम के पानी का एनिमा, स्पंजबाथ, रसाहार, ज्वरनाशक शोधक- आहार आदि के प्रयोग से लाभ होता है। 

यकृत् – विकारों में नीम के पानी का एनिमा, कटिस्नान तथा फलों के रस के सेवन से लाभ होता है। 

उच्चरक्तचाप में नींबू के रस एनिमा वैज्ञानिक मालिश, पाद स्नान, भापस्नान, धूपस्नान आदि क्रियाओं का प्रयोग तथा संतुलित एवं पोषक आहार के सेवन से लाभ होता है। 

सामान्य एवं असामान्य कैंसर वाली गांठों में मिट्टी की पट्टी, नीम पानी का एनिमा, गांठ पर हल्दी तथा घृतकुमारी मिश्रित मिट्टी की पुल्टिस, ठण्डा कटिस्नान, रीढ़स्नान, कैंसरनाशक गिलोय, नीम एवं गेहूँ के ज्वारे का रस, गहरे हरे, लाल, पीली तथा नारंगी रंग की सब्जियों फलों का सेवन तथा अंकुरित अनाज आदि का सेवन करने से लाभ होता है। 

मोटापे में मिट्टी की पट्टी, मिट्टी का सर्वांग लेप, एनिमा, मडपूल में तैरना, मिट्टी की मालिश, सूर्यतप्त रेत स्नान, ठण्डागर्म कटिस्नान, वाष्पस्नान, नींबू रस मिश्रित जल का सेवन, सुखोष्ण जल का सेवन तथा उपवास आदि करने से लाभ होता है। 

अस्थिशूल, सन्धिशूल, स्क्लेरोडर्मा, कटिशूल, गृध्रसी, पक्षाघात, वातरक्त तथा गठिया आदि व्याधियों में नीम के पानी का एनिमा, वाष्पस्नान, मृदु मालिश, अण्डरवाटर मसाज, रेत स्नान, पादस्नान, वातनाशक पत्रों से निर्मित पुल्टिस के सेक तथा पोषक एवं शोधक आहार का सेवन करने से लाभ होता है। 

नपुंसकता तथा शुक्राल्पता में नीम के पानी का एनिमा, रीढ़, पेडू एवं पिण्डलियों की मालिश, वृषण पर मिट्टी का लेप, ठण्डा कटिस्नान, मेहनस्नान, धूपस्नान तथा संतर्पक एवं पोषक आहारों का सेवन करने से विशेष लाभ होता है। 

ओजक्षय (AIDS) में प्रतिरोधक क्षमता के अनुसार मिट्टी की पट्टी, एनिमा, कटिस्नान, सूर्यस्नान तथा रोगप्रतिरोधक क्षमतावर्धक शोधक संतर्पक आहार के सेवन से विशेष लाभ होता है। 

श्वेतप्रदर, रक्तप्रदर, गर्भाशय की गांठ, अतिमासिक स्राव, मासिक विकार

गर्भपात या गर्भस्राव आदि में मिट्टी की पट्टी, मालिश, नीम के पानी का एनिमा, नीम के पानी से योनि का प्रक्षालन, कटिस्नान, वाष्पस्नान, रसाहार, शोधक तथा पोषक आहार का सेवन करने से लाभ होता है। 

मुंहासे में मिट्टी की पट्टी, नीम के पानी से चेहरे का प्रक्षालन, शहद तथा नींबू के रस की मालिश, वाष्पस्नान, कटिस्नान आदि क्रियाओं के प्रयोग से तथा शोधक पोषक आहार का सेवन करने से लाभ होता है। 

प्रमेह, शुक्रमेह, स्वप्नदोष, शीघ्रवीर्यपात, अण्डाणु एवं शुक्राणु दोष, नपुंसकता तथा बांझपन आदि में एनिमा गर्मठण्डा सेक, मिट्टी की पट्टी, कमर, नितंब व कंधे की मालिश, मेहन स्नान, रीढ़स्नान, कटिस्नान, सर्वांग मिट्टी का लेप, सूर्यस्नान आदि क्रियाओं तथा संतुलितं पोषक आहार के सेवन से विशेष लाभ होता है

मल्टीपल स्क्लेरोसिस, एस.एल.ई. तथा ऑटो इम्युन डिजीज़ में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाले उपचार एवं आहारविहार, मिट्टी की पट्टी, एनिमा, रोगग्रस्त अंगों की स्थिति के अनुसार मृदु मालिश, वाष्पस्नान आदि से विशेष लाभ होता है। 

वेरीकोज वेन में मिट्टी की पट्टी, मृदु वाष्पस्नान आदि से लाभ होता है16. हार्निया में मिट्टी की पट्टी, एनिमा, कटिस्नान, वाष्पस्नान, गर्म पादस्नान, धूपस्नान तथा आसनों के प्रयोग से लाभ होता है। 

अक्षिशूल, शिरःशूल तथा सर्वांगशूल आदि में क्रमशः ठण्डे गर्म सेक से लाभ होता है। 

आधासीसी, जीर्ण शिरःशूल, तनाव, अवसाद आदि मानसिक बीमारियों में जलनेति, सूत्रनेति, स्नेहनेति, मिट्टी की पट्टी, सिर ग्रीवा की मालिश, सर्वांग मिट्टी का लेप, रसोपवास, फलोपवास जलोपवास तथा पोषक एवं संतुलित आहार के सेवन से विशेष लाभ होता है। 

वृक्कनिष्क्रियता तथा वृक्क सम्बन्धित अन्य विकारों में पेडू वृक्क पर गर्मठण्डा सेक, मालिश, नीम के पानी का एनिमा, कटिस्नान, वाष्पस्नान, धूपस्नान आदि क्रियाओं से लाभ होता है। 

सोरायसिस, एग्जीमा आदि चर्मरोगों में मिट्टी की पट्टी, नीम के पानी का एनिमा, वाष्पस्नान, धूपस्नान तथा विषनिष्कासक एवं शोधक आहारों के सेवन से लाभ होता है। 

उपर्युक्त विकारों में रोगी की स्थिति के अनुसार पूर्ण या आंशिक उपवास तथा पोषक संतुलित आहार का प्रयोग करना चाहिएयोग प्राकृतिक चिकित्सा एकदूसरे के पूरक है | अतः उपर्युक्त विकारों में षट्कर्म, प्राणायाम एवं ध्यान का प्रयोग अति आवश्यक है प्राकृतिक चिकित्सा की विभिन्न विधियों का प्रयोग करने से व्यक्ति आजीवन रोगमुक्त होकर सुखमय जीवन व्यतीत करता है। 

नोट :- Prakritik Chikitsa यह जानकारी सिर्फ सामान्य जानकारी के लिए है, किसी भी चीज का सेवन करने से चिकित्सक परामर्श अवश्य ले |

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